धार्मिक_आलेख / तुलसी का दास्य भाव
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■ दास्य भाव के सर्वोच्च प्रतीक गोस्वामी तुलसीदास !
【प्रणय प्रभात】
एक प्रेरक वक्ता के रूप में लगभग दो दशक तक सक्रिय रहा। ईश कृपा से एक हज़ार के आसपास कार्यक्रमों में उद्बोधन का अवसर मिला। श्री रामचरित मानस के महान पात्रों व प्रसंको सहित तमाम रोचक व प्रेरणादायी तथ्य मेरे वक्तव्यों में सहज ही समाहित होते रहे। जिनका श्रेय श्री रामकथा मंदाकिनी के उन अनेकानेक प्रवाचकों को समर्पित है, जिनके वचनामृतो को ग्रहण कर कई संशय दूर हुए। कुछ प्रभाव सतत स्वाध्याय का भी रहा। जीवन पर इस दिव्य महाग्रंथ का सर्वाधिक प्रभाव रहा जो विगत दो वर्ष के कालखंड में और उत्कर्ष पर आया। हिंदी साहित्य के एक विद्यार्थी के रूप में भी गोस्वामी तुलसीदास जी मेरे सर्वाधिक प्रिय कवि रहे। संवाद शैली में अपने उद्बोधन के बीच प्रश्न करना मुझे सदैव भाया। इससे वक्ता व श्रोताओं के बीच एक रुचिकर सामंजस्य जो स्थापित होता है। कई कार्यक्रमों में मैंने यह प्रश्न विद्यार्थियों के बीच रखा कि-
“बंदहु गुरुपद पदमु परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा” में गोस्वामी जी ने किस की वंदना की है। हर बार सतही स्तर पर एक सा उत्तर मिला- “गुरु चरणों की।” चौपाई के मर्म तक महाविद्यालय के विद्यार्थी भी नहीं पहुंचे। यूँ भी कह सकते हैं कि उन्होंने महाकवि की अगाध श्रद्धा के स्तर को जानने का प्रयास ही नहीं किया। ऐसे तमाम विद्यार्थियों को बताना पड़ा कि इस एक चौपाई में गुरु या गुरु चरण नहीं बल्कि “चरण-रज” (धूल) की वंदना की गई है। जो गोस्वामी जी को दास्य भाव का सर्वोत्कृष्ट कवि सिद्ध करती है। इस चौपाई का भावार्थ दास्यभाव का उत्कर्ष है। महाकवि की गुरु के प्रति विनम्र आस्था का प्रमाण भी। स्मरण रहे कि यह वंदना श्री हनुमान जी महाराज के श्रीचरणों की है। जिनकी प्रेरणा से श्री तुलसीदास जी ने इस संसार को श्री रामचरित मानस जैसा महान ग्रंथ दिया। गुरु के कमल रूपी चरणों के परागकण अर्थात रज-कण की वंदना कर बाबा तुलसीदास जी ने गुरु-महात्म्य को नए आयाम भी दिए। जिनके लिए गुरु चरणों में आसक्त प्रत्येक गुरुभक्त को उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। ध्यान रहे कि दास्यभाव की पराकाष्ठा का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। बाबा तुलसी श्री हनुमान चालीसा का श्रीगणेश “श्री गुरु चरण सरोज रज” के साथ करते हुए गुरु चरणों की रज के प्रति अपनी इसी निष्ठा को दोहरा चुके हैं। जो उनकी भावनात्मक अनुभूति और भावात्मक अभिव्यक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं तथा इस आलेख के शीर्षक को स्वतः चरितार्थ करते हैं।
जय राम जी की। कोटिशः प्रणाम गोस्वामी जी को।।
【कोलफील्ड मिरर में आज प्रकाशित आलेख, जो साहित्य से संबंधित विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए उपयोगी हो सकता है】