” धर्म -संकट….फ़ेसबूक मित्रों का “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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वो दिन अब चले गए जब हम सीमित दायरों में अपनी दोस्ती को पनपने देते थे ! अपने गाँव ,शहर ,स्कूल और कॉलेज की मित्रता के इर्द -गिर्द अपनी मित्रता घूमती रहती थी ! हम सब के करीब होते थे ! किन्हीं एक मित्र की अनुपस्थिति हमें बेचैन कर देती थी !
“अरे ,मनोज को हम नहीं देख रहे हैं ” ! ” गुलाम सरवर भी आजकल दिख नहीं रहा है ” शेखर आज कल टेबल टैनिस नहीं खेल रहा है ? हम लोगों से पुछते थे ! उनकी कुशलताओं की जिज्ञासा रहती थी ! हम उनके घर तक पहुँच जाते थे ! यथासाध्य उनकी सेवा और सहायता में लग जाते थे !
हमारा मिलन क्लास रूम में होता था ! हम खेल के मैदानों और विचारों के आदान -प्रदान के समय मिलते थे ! सामाजिक कार्यक्रम ,पर्व -त्यौहारों में उनके घरों में जाकर बधाई ,शुभकामना और बुजुर्गों से आशीष लेते थे !
अब तो सारा दृश्य ही बदल गया है ! अनगिनत दोस्त बनते जा रहे हैं ! एक अकाउंट में 5000 मित्र बनाने का मापदंड है अन्यथा सबके सब कौरव सैन्य की संरचना में लग जाते !
हम अधिकांशतः किन्हीं को नहीं जान सकते हैं ! कई -कई तो ऐसे लोग होते हैं मात्र अपना निबंधन करके न जाने किस कोप -भवन में वर्षों तक छुपे रहते हैं ? किसी के स्वास्थ्य की जानकारी शायद ही किसी को मिल पाये !
मित्र के रूप में हम स्वीकार हैं पर दो शब्द हम उनके टाइम लाइन पर लिख नहीं सकते ! यदि हम उनसे गुफ्तगू मेस्सेंजर में करना चाहें तो वह भी गंवारा नहीं ! जवाब तो देंगे नहीं हाँ ,कुछ अंतराल के बाद कुछ अटपटा सा उधार का पोस्ट ,पोस्ट करेंगे !
सबको बधाई ,शुभकामना ,प्रणाम ,अभिनंदन ,आभार और स्नेह देना चाहते हैं ! अपनों से श्रेष्ठ से आशीष पाना चाहते हैं पर यह आकांक्षा अधूरी रह जाती है ! 90-95 % मित्रों की टोली पता नहीं कहाँ छुप के बैठे हैं ? उनका दर्शन दुर्लभ हो गया है ! यह “” धर्म -संकट ….फ़ेसबूक मित्रों का ” है या नहीं आप ही निर्णय करें !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका