धर्म और बाहुबल
रोज रोज धर्म की आड में,
होते देख अत्याचार,
बाहुबल आधार पर कब
होते प्रचार और प्रसार.
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तथाकथित धर्म सब करे,
मानवता शर्मसार,
छीन झपटकर संग्रह करे,
बांटनवार इकसार,
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अपनी अपनी तूमडी
अपने अपने राग.
हट भी जाये रहस्य पट
कैसे सजेगा साज.
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आज से जो भी कहें,
कहे सोच विचार,
बेईमानों मांगते राज.
धूमिल सब आचार.