धरा को धरती ही
धरा को धरती ही रहने दो,
ना उतारो आकाश को,
स्वर्ग के लिए.
हाजिर है बंदे सहयोग को,
जरा इशारे तो करो,
अमन के लिए.
हाथ ना फैले भीख के लिए,
जरा तलब तो करो,
कमाने के लिए.
आदतें है, बनाती है आदतें,
तनिक गौर तो करे,
बदलाव खातिर.
आज नहीं तो कल बरसेंगे,
अधिक बरस गये तो.
पेड़ लगाओ,
(भूस्खलन रोकने खातिर)
कल भी जी रहे थे, आज भी.
कल सीखा आज भी.
खाने की खातिर.
बिना भगवान भी जीव पनपते,
जीव जीव से सजे (जीवन-लीला)
उद्भव विनाश कला,
डॉक्टर महेन्द्र सिंह