धरना-प्रदर्शन की नियमावली (हास्य व्यंग्य)
धरना-प्रदर्शन की नियमावली (हास्य व्यंग्य)
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धरना किसी भी विषय पर हो लेकिन हमें विचार अवश्य करना चाहिए । विषय का नहीं ,बल्कि धरने – प्रदर्शन का विचार जरूरी है । कायदे से धरना – प्रदर्शन के बारे में जितना सोचा जाना चाहिए था ,वह नहीं सोचा गया । अगर सोचते तो यह नौबत नहीं आती कि धरना प्रदर्शन के लिए ढंग से कोई इंतजाम भी हमारे देश में नहीं है ।
जगह जगह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ आजादी के बाद से ही धरने – प्रदर्शन होते रहे हैं । अनेक मुद्दों पर धरने प्रदर्शन होते रहते हैं लेकिन सब अस्त-व्यस्त हैं। जब जिसका मन आया ,धरना प्रदर्शन पर बैठ गया । चाहे जैसे कपड़े पहने, चाहे जितनी देर तक बैठा ,फिर चला गया। लौटकर फिर आ गया , मन किया तो जमा रहा । यह सब नहीं चलता । ऐसे थोड़े ही धरना – प्रदर्शन होता है । कोई एक नियमावली तैयार होनी चाहिए । यह नियमावली कौन बनाएगा ? विपक्ष वाले तो बना नहीं सकते । तो इसके लिए पूरे देश में जितनी सरकारें हैं ,उनको ही काम करना पड़ेगा ।
कम से कम कितने लोग धरने पर बैठें, यह भी नियम होना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा संख्या कितनी होनी चाहिए ,यह भी नियम होना चाहिए । धरना कहाँ दिया जाए, इसका निर्धारण नियमानुसार होना चाहिए। किस तरह के कपड़े पहनकर कितने बजे से धरना शुरू किया जाए और कब तक चले, इसका भी नियम बनाना चाहिए। किस स्थान पर धरना हो ,यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
फिर प्रश्न आता है कि जो लोग धरने पर बैठे हैं ,उनको किस प्रकार की सुविधाएँ दी जाएँ ताकि धरना व्यवस्थित रूप से आगे बढ़े । धरने पर बैठे लोगों के लिए गर्मियों में कोल्ड ड्रिंक तथा लस्सी आदि का प्रबंध होना चाहिए। जाड़ों में चाय हो । इसके अलावा नाश्ते में क्या दिया जाए ? लंच और डिनर किस प्रकार का हो ? इस पर भी कुछ नियम बनने चाहिए । कितना वार्षिक बजट धरना – प्रदर्शन को पुष्पित – पल्लवित करने के लिए रखा जाए ,यह एक अलग विचार का विषय है । प्राथमिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना बड़े धरनों के बीच में होनी चाहिए। केवल इतना ही नहीं अगर घरने लंबे चलते हैं तब सिर के बाल काटने की सुविधा तथा नाखून काटने की सुविधाएँ भी होनी चाहिए। चार – छह दिन चलने वाले धरनों में अगर स्नान – गृह का प्रबंध हो ,तो साफ – सफाई अच्छी रहती है ।
धरने सभी को कभी न कभी देने होते हैं। जो विपक्ष में हैं, वह कभी न कभी सत्ता पक्ष में आते हैं । जो सत्ता पक्ष में हैं ,उनको विपक्ष में जाना पड़ता है । इसलिए धरने के बारे में सबको आत्मीयता पूर्वक विचार करना चाहिए । कल को सभी को बैठना है। जो सुविधा मिलेगी ,उसका लाभ एक न एक दिन सभी उठाएंगे ।
धरने के रखरखाव तथा उसके विकास के लिए एक कमेटी बनाना उचित रहेगी। एक आयोग का गठन भी हो सकता है ,जो धरने के बारे में सरकार को अपनी रिपोर्ट दे और उसे लागू करने के लिए निवेदन प्रस्तुत करे । जो पार्टी जब भी सत्ता से बाहर होगी वह उस रिपोर्ट को लागू करने की माँग करेगी । सत्ता पक्ष को जल्दी से जल्दी धरना रिपोर्ट को लागू करना चाहिए क्योंकि सबको धरने पर बैठना ही होगा। धरना राजनीति का शाश्वत नियम है । जो राजनीति में आया है , वह धरना अवश्य देगा । आदमी सत्ता की कुर्सी पर कितने दिन बैठेगा ? फिर धरने के सिवा जिंदगी में और धरा भी क्या है ? इसलिए धरने के बारे में जल्दी से जल्दी पक्ष और विपक्ष सब मिलकर सोचें । यह सब के फायदे की चीज है ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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