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19 Apr 2024 · 1 min read

दोहा सप्तक. . . . . . रोटी

दोहा सप्तक. . . . . . रोटी

कैसे- कैसे रोटियाँ, दिखलाती हैं रंग ।
रोटी से बढ़कर नहीं,इस जीवन में जंग ।।

रोटी के संघर्ष में, जीवन जाता बीत ।
अर्थ चक्र में गूँजता , रोटी का संगीत ।।

रोटी का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।
बिन रोटी के बीतता ,हर पल जैसे कल्प ।।

रोटी से बढ़कर नहीं, दुनिया में कुछ यार ।
इसके आगे दौलतें , इस जग की बेकार ।।

दो रोटी ने दोस्तो , क्या – क्या दिये अजाब ।
मुफलिस की तकदीर का, रोटी हसीन ख्वाब ।।

करवाती हैं रोटियाँ, जाने क्या-क्या काम ।
दो रोटी की आस में, बीती उम्र तमाम ।।

क्षुधित उदर की आस है, रोटी का हर ग्रास ।
जीवन तो इसके बिना , हरदम रहे उदास ।।

सुशील सरना / 19-4-24

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