दो-दो भारत
दो दो भारत
वंचितों की बस्तियां इस ओर हैं,
सम्पंनों की बस्तियां उस ओर हैं,
उधर महके संपन्नता में छोर-छोर,
इधर अभावग्रस्त है हर कोर-कोर,
उधर पकवानों की महक उठी है,
इधर पतीली उपेक्षित सी पङी है,
उधर पालतू कुत्ते भी गोश्त खाते हैं,
इधर के बच्चे कुपोषित हो जाते हैं,
वो नित छोङते हैं झूठन थाली में,
इधर फाके हो जाते हैं कंगाली में,
उधर अय्याशी पे खर्च हो जाता है,
इधर बालक भूखा ही सो जाता है,
सिल्ला इस धरा पे दो-दो भारत हैं,
इधर झुग्गियां उधर ऊंची इमारत हैं,
-विनोद सिल्ला©