दो गज का कफ़न
बातें तो थी हीरों की, मिट्टी का ये तन लेकर!
रुख़सत जो हुआ तो बस,दो ग़ज़ का कफ़न लेकर!!
इक पल भी नहीं लगता, पत्थर के शहर में दिल!
जाऊँ तो कहाँ जाऊँ शीशे का ये मन लेकर!!
रूठा रहूँ चाहत है,,,,,पर मानूँ नहीं कैसे!
वो आये हैं अश्क़ों से, तर अपने नयन लेकर!!
सो जाऊँ सुकूँ से मैं, बाँहों में कज़ा तेरी!
आया हूँ तेरे दर पर, जीवन की थकन लेकर!!
साधू का पहन चोला , शैतान हैं बहुतायत!
हाथों में लिए मनके, होठों पे भजन लेकर!!
हसरत नहीं सूरज की या चाँद सितारों की!
जुगनू ही सही आये धुँधली सी किरन लेकर!!
बर्बाद गुलिस्तां ए दिल कर गए जीते जी!
आये हैं वो तुर्बत पर अब सारा चमन लेकर!!