दोहे
शांत चित्त
रखो शांत चित तुम सदा,रहो आसरे राम ।
क्रोध त्यागना है भला, कहे साँवरे शाम ।।
मंथन मानस तुम करो, जीवन पावन गीत ।
अंतस धारण शांत चित,आंचल कांचन मीत ।।
हर अज्ञान कर शांत चित्त, मत गुमान कर ठान ।
जब जबान बस में रहे, हम महान है मान ।।
भजन राम का तुम करो, मनन
शांत चित्त संग ।
शरण नाम की तुम रहो, वरण
प्रेम का रंग ।।
झूठ का नित संहार , राम भरे
भंडार ।
शांत चित्त आधार, सखी लो काम
संवार ।।
सीमा शर्मा