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28 Sep 2024 · 1 min read

दोहे

दोहे

बने शिकारी भटकते, मोह
बिछाए जाल ।
लगन कमाने की लगी, बोझ
चढ़ाए भाल ।।

राम हमारे वन चले, भाग
लिखाये रंज ।
भोग विधाता खुद रहे, नियति
दिखाए रंग ।।

बनो पुजारी यज्ञ करो, प्रेम
समीधा डाल ।
जगत छलावा समझना, माथ
विराजा काल ।।

नेक कमाई तुम करो, छोड़
बुराई काज ।
ह्रदय सच्चाई से भरो, राम
कराए राज ।।

बड़ा सयाना जीव वो, नियत
बनाये साफ,
करे भलाई जन सभी, पाप
कराए माफ ।।

सीमा शर्मा

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