दोहे
दोहे
बने शिकारी भटकते, मोह
बिछाए जाल ।
लगन कमाने की लगी, बोझ
चढ़ाए भाल ।।
राम हमारे वन चले, भाग
लिखाये रंज ।
भोग विधाता खुद रहे, नियति
दिखाए रंग ।।
बनो पुजारी यज्ञ करो, प्रेम
समीधा डाल ।
जगत छलावा समझना, माथ
विराजा काल ।।
नेक कमाई तुम करो, छोड़
बुराई काज ।
ह्रदय सच्चाई से भरो, राम
कराए राज ।।
बड़ा सयाना जीव वो, नियत
बनाये साफ,
करे भलाई जन सभी, पाप
कराए माफ ।।
सीमा शर्मा