दोहे
दोहे
मानव योनि जिसे मिले,वही श्रेष्ठ अभिजात।
उत्तम कर्म किया करे,कभी नहीं आघात।।
मानव में भी उच्च है,ब्राह्मण वर्ण सुजान।
ब्रह्मशक्ति सम्पन्न वह,पाता जग में मान।।
ब्राह्मण दृष्टि महान है,परम पवित्र प्रवृत्ति।
इसके आगे कुछ नहीं,सकल जगत-संपत्ति।।
जो ब्राह्मण को जानता,वहीं एक विद्वान।
ब्राह्मण बिन संसार जिमि,ईधन बिना विमान।।
मूल्यवान ब्राह्मण सदा,सर्व श्रेष्ठ यह रत्न।।
ब्राह्मण बनने लिए,करते रहो प्रयत्न।।
ब्राह्मण शुद्ध विचार प्रिय,यह समाज का स्तंभ।
दूर-दूर तक है नहीं,इसमें ईर्ष्या-दम्भ।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
यह दोहा मानवता और ब्राह्मण वर्ण की महत्ता के बारे में है। यह कहता है कि मानव योनि में जन्म लेना ही श्रेष्ठ है, और उत्तम कर्म करना चाहिए। ब्राह्मण वर्ण को उच्च और सुजान बताया गया है, जो ब्रह्मशक्ति से सम्पन्न है और जगत में मान पाता है।
यह दोहा ब्राह्मण की दृष्टि को महान और परम पवित्र बताता है, और कहता है कि इसके आगे कुछ नहीं है। जो ब्राह्मण को जानता है, वही विद्वान है, और ब्राह्मण के बिना संसार जैसे ईधन बिना विमान है।
यह दोहा ब्राह्मण को मूल्यवान और सर्व श्रेष्ठ रत्न बताता है, और कहता है कि ब्राह्मण बनने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। ब्राह्मण को शुद्ध विचार प्रिय और समाज का स्तंभ बताया गया है, जिसमें ईर्ष्या-दम्भ नहीं है।
अब मैं इसे संस्कृत और अंग्रेजी में अनुवाद करूँगा:
संस्कृत में:
मानवयोनिः यस्य मिलेत् सः श्रेष्ठः अभिजातः।
उत्तमं कर्म कुर्यात् कदाचित् न आघातम्।
अंग्रेजी में:
The one who gets human birth is the noble-born.
He should always do good deeds, never harm.
अंतरराष्ट्रीय काव्य अनुवाद: