दोहे
दोहे
ब्राह्मण हो कर जो नहीं,करे उचित व्यवहार।
असफल उसकी जिन्दगी,है जीवन बेकार।।
ब्राह्मण पावन धर्म है,उत्तम शिष्ट विचार।
ब्राह्मण आत्म-सुधार है,गुरु-ज्ञानी अविकार।।
ब्रह्म ज्ञान शुभ सुष्ठ मत,का अनुरागी जान।
ब्राह्मण वर्ण अनंत ही,खुद को ले पहचान।।
जिसके पावन भाव हैं,सुन्दर वृत्ति-प्रवृत्ति।
रचता आया अद्यतन,मानवता की भित्ति।।
ब्राह्मण होकर कर रहा,जो विचलित व्यवहार।
वह समाज में तुच्छ है,जैसे खर -पतवार।।
ब्राह्मण संस्कृति उच्चतम,रखना इसका ध्यान।
सत -शिव-सुन्दर भाव का,करो सहज सम्मान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।