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16 May 2023 · 7 min read

दोहे

0 1 दुर्बल की खातिर लड़े , वह है सच्चा वीर
इसी बात को कह गए तुलसी सुर कबीर।।

02 मानवता से हीन जो , दुर्बल की ले हाय।
भले देव वह स्वयं हो , दानव ही कहलाय।।

03 मानव जीवन यदि मिला , बोलो मीठे बोल।
पता नहीं कब शांत हो , यह जीवन अनमोल।।
04 छोटी छोटी बात में , जिस घर हो तकरार।
सुख वैभव सपनें नहीं , रोगों का दरवार।।
05 मात पिता अरु गुरु का , जो रखता है ध्यान ।
पाता है वह जगत में , नित सच्चा सम्मान।।

06 वृक्षों में गुण बहुत हैं , कभी न काटें आप
वृक्ष बिना सूनी धरा , केवल दुख सन्ताप ।।
07 तपती सारी धरा जब , नहीं दीखती छांव।
पेड़ जड़ो से काटते , चलते रहते दांव ।।

जलाते लोग रावण को,कहाँ अब राम जिंदा हैं।
मर चुकी भावना सबकी,कहाँ इंसान जिंदा हैं।।
नही अब शील सिय जैसा,कहाँ है धैर्य रघुवर का-
कपट का स्वांग रचते नित,बचे हैवान जिंदा हैं।।
08 मन से तो करते नहीं, हिंदी को स्वीकार।
सिर्फ दिखावे के लिए ,हिंदी की जयकार।।

09.सत्ता दिखती बदलती ,बदले ना हालात ।
लोकतंत्र ना विफल हो, दो ऐसी सौगात।।

10.तू भी पाएगा कभी ,फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात।।

11 बने विजेता वो सदा ,ऐसा मुझे यकीन।
आँखों में आकाश हो ,पाँवो तले जमीन।।

12 जब तुमने यूँ प्यार से, देखा मेरे मीत।
थिरकन पाँवों में सजी, होंठों पर संगीत।।

13 .तुम साथी दिल में रहे, जीवन भर आबाद।
पर तुम करते हो नहीं , मुझे कभी भी याद।।

14 हिन्दी हो हर बोल में, हिन्दी पर हो नाज।
हिन्दी में होने लगे, शासन के सब काज।।

15.हिन्दी भाषा हो रही, जन-जन की आवाज।
फिर भी आँसू रो रही, कदम कदम पर आज।।

16.मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार।
लिखी मात की पातियाँ, बाँचू बार हजार।।

17.बना दिखावा प्यार अब, लेती हवस उफान।
रूहानी अब कुछ नहीं , केवल तन पर ध्यान ।।

18 आपस में जब प्यार हो, फले खूब व्यवहार।
रिश्तों की दीवार में, पड़ती नहीं दरार।।

19 चिट्ठी लायी गाँव से, जब राखी उपहार।
आँखे बहकर नम हुई, देख बहन का प्यार।।

20.लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात।
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घूसे-लात।।

21 नहीं रहे मुंडेर पे, तोते-कौवे-मोर।
डूब मशीनी शोर में, होती अब तो भोर।।

22 सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव।
पंछी उड़े प्रदेश को, बाँधे अपने पाँव।।

23 .ख़त वो पहले प्यार का, देखूँ जितनी बार।
महका-महका-सा लगे, यादों का गुलजार।।

24.बन के आँसू बह चले, जब हिरदय की पीर।
तनवा काशी-सा लगे, मनवा बने कबीर।।

25 .अपना सब कुछ त्याग के, हरती नारी पीर।
फिर क्यों आँखों में भरा, आज उसी के नीर।।

26 कलयुग के इस दौर में, ये कैसा बदलाव।
सगे-संबंधी दे रहे, दिल को गहरे भाव।।

27.मात-पिता के वेश में, जानो सीता राम।
पाएगा तू क्या भला, जाकर काशी-धाम।।

28.आजादी के बाद भी, देश रहा कंगाल।
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल।।

29.जिस घर में होता नहीं,नारी का सम्मान
बरकत सुख सपने नहीं,घर लगता शमसान
30बहते आंसू कह रहे , जज्बातों की पीर ।
लोग सयाने हो गए , गूंगा खड़ा कबीर ।।

31.रिश्तों की दीवार में , पड़ती रोज दरार ।
लोग सयाने हो गए , भला करे करतार

3 2.दिखते नहीं मुँड़ेर पर , तोते कौए मोर ।
लील गया प्रकृति सकल, आज मशीनी शोर

33.बना दिखावा प्यार अब , लेती हवस उफान ।
रूहानी अब कुछ नहीं , केवल तन पर ध्यान ।।

34.कुरसी की महिमा अमित , अमित सिखावन हार ।
अमित बढ़े धन संपदा , अमित बढ़े व्यापार ।।

35 .लोकतंत्र है देश में , फिर भी जन बेहाल ।
यही प्रश्न करता रहा विक्रम से बेताल ।।

36 साहस हो संकल्प हो , मिलती निश्चित जीत ।
मन निर्मल रक्खो सदा, होगी हरि से प्रीति ।।

37.टूटा है संपर्क बस , जीवित है संकल्प ।
दीवानों का देश यह , कल है नया विकल्प ।।

38 .राजनीति में नीति अब , दिखती कौसों दूर ।
सत्ताधीशों में दिखे , अहंकार का नूर ।।

39 सकुचाती गोरी खड़ी ,दर्पण रही निहार ।
अंग अंग दिखला रहा , रात पिया का प्यार ।।

40 अहसासों की नित कमी, खलती रिश्तों बीच ।
स्वार्थ परक संवेदना , सनी जंग अरु कीच ।।

41सियासती वैमनस्यता , आज चरम की ओर ।
राज खोलने में लगे , नीति रही उस छोर ।।

42 तरु तरुवर धरती भरे , प्रमुदित मन में आस ।
हरियाली हो देश में , पर्यावरण प्रकाश ।।

43 .कर्म योग पूजा बना , मन ऋतु कर अनुकूल ।
महकेंगे फिर हे सखे , मरुथल में भी फूल।।

44 जरा जरा सी बात पर , इक दूजे से घात ।
इतने नीचे आदमी , बिगड़ गये हालात।।

45 .पूर्वाग्रह से हो ग्रसित , यदि होता है न्याय ।
कितना भी ज्ञानी सही , कर सकता अन्याय ।।
46 चलो सखी अब साथ में ढूंढे बरगद आम ।
तन मन भीगा स्वेद से ,पसरी चहुँ दिशि घाम ।।

.47 बहुत बावरी ग्रीष्म ऋतु ,झुलसा देत शरीर।
जग खारा सब स्वेद सम ,मन नित होत अधीर ।।

48 हार जीत तो ठीक है , लोकतंत्र का अंग।
बैर भाव घृणा मिटे ,रहें प्रेम से संग ।।

49 न वसन्त से रोष है , न पतझड़ से प्यार ।
रंगमंच पर दिख रहे , भिन्न भिन्न किरदार।।
50 कंचन सी कामायनी , हिरनी जैसे नैन ।
मुखमण्डल मन मोहनी ,संग सजीले सैन।।

51 पैसा पैसा रात दिन ,पैसे का गुणगान ।
दो कौड़ी में बिक रहा ,देखो नित इंसान ।।

52 गोरे काले रंग से ,क्या निकले अंजाम ।।
गोरे मुखड़े के दिखे ,कितने काले काम।।

53 कोई मजहब हो प्रिये ,सबकी सीख समान
हिन्दू मुस्लिम बाद में , पहले हिंदुस्तान

54 . कुर्सी पा मत भूलना ,धर्म, प्रेम ,बलिदान।
अपने जैसा समझना ,औरों का सम्मान ।।

55 वर्षो से करता नहीं बेटा माँ से बात ।
ऐसी अजब विडम्बना व्रत रखता नवरात।।

56 . नारी का अपमान नित , अरु अनुचित व्यवहार ।
मंदिर जा कर कर रहे,माँ की जय जय कार ।।

57 चील उड़ी कौआ उड़ा , बचपन उड़ा मलाल ।
लोरी ,गोदी सब उड़े , बस गूगल जंजाल।।

58 शिल्प,भाव अनिवार्य है, रचने कविता गीत ।
हिय की कोमलता भरे , लेखन में नवनीत ।।
59 थोड़ी सी तारीफ में जो भूलें , औकात ।
पाण्डे ऐसे लोग ही करते , ओछी बात ।।

60 भादों सावन हो गए , सबके दोनों नैन ।
नेत्र तीसरा क्वार का , करे कृषक बेचैन।।

61जिस घर में माता पिता , रहते सदा उदास।
मरघट है वह घर नहीं , भूतों का है वास ।
62 रोज रोज के प्रश्न से , विक्रम है बेहाल ।
गूगल देवा कुछ करो , निष्ठुर है वेताल ।।

63 आजादी के बाद भी , देश दिखे बेहाल
यही प्रश्न करता रहा , विक्रम से बेताल ।।
64 कविता का ऐसा नशा , छाया है चहुं ओर ।
पांडे मंचो पर दिखे , विदूषकों का शोर ।।

65 मात पिता के रूप में , घर में चारों धाम ।
सेवा नित करते रहो , पूरे हों सब काम ।।

66 नारी की तकदीर में , कैसी कैसी पीर ।
बढ़े दुशासन हर जगह , हरदम खींचें चीर।।
67 कवि वाणी पाती नहीं , जहाँ उचित सम्मान।
दुनियां में उस देश का , रक्षक है भगवान ।।

68 कविता जहां स्वतंत्र है , कवि है जहां स्वतंत्र ।
हो सकता हरगिज नहीं , वही देश परतंत्र ।।
69 नारी तू नारायणी , करुणा का अवतार ।
प्रथम शिक्षिका जगत की , अगणित हैं उपकार।।
70 नारी से ही नर हुआ , भूल गया यह ज्ञान
अपमानित करता उसे , मान स्वयं भगवान।।

71 ममता की मूरत सदा , परहित तेरा जन्म।
उऋण नहीं जगदीश खुद , ऋणी जगत आजन्म ।।
72 माता के स्नेह को , लालायित भगवान।
फिर हम क्यों वंचित रहें , दें उसको सम्मान।।

73 सुख चाहे कितना मिले , रखिए मन समभाव ।
दुख में हरि सुमरन करें कष्ट न देंगे घाव ।।
74 डगमग धरती डोलती , आते नित भूचाल ।
रोक सकल दोहन अभी , दस्तक देता काल ।।
75 दुर्बल की खातिर लड़े , वह है सच्चा वीर
इसी बात को कह गए तुलसी सुर कबीर

76 मानवता से हीन जो , दुर्बल की ले हाय।
भले देव वह स्वयं हो , दानव ही कहलाय।

77 मानव जीवन यदि मिला , बोलो मीठे बोल
पता नहीं कब शांत हो , यह जीवन अनमोल।।
78 छोटी छोटी बात में , जिस घर हो तकरार।
सुख वैभव सपनें नहीं , रोगों का दरवार।।
79 मात पिता अरु गुरु का , जो रखता है ध्यान ।
पाता है वह जगत में , नित सच्चा सम्मान

80 वृक्षों में गुण बहुत हैं , कभी न काटें आप
वृक्ष बिना सूनी धरा , केवल दुख सन्ताप
81 तपती सारी धरा जब , नहीं दीखती छांव
पेड़ जड़ो से काटते , चलते रहते दांव
82 माँ की ममता का भला ,क्या दे सकते मोल ।
सबका हित मंगल दिखे ,करती जतन अमोल ।।

83 झूठ सदा चलता नहीं , कितना करो प्रयास ।
यदि सच का हो अनुगमन , जीवन दिखता खास ।।

84 शिक्षा का उद्देश्य अब , भटक चुका है राह ।
चाहे जैसा रूप हो , अर्थ कमाना चाह ।।

85 घर समाज या विश्व की , करे कौन परवाह ।
शिक्षित ज्यादा लड़ रहे , कौन दिखाए राह ।।

86 जो समाज को जोड़ते , प्यार और विश्वास ।
वही सिसकते आज हैं , करते ठौर तलाश।।

87 शिक्षा प्रेरक प्रेरणा , सदा दिखाती राह ।
कर्मवीर इंसान में , भरती है उत्साह ।।

88 सबको रखती जोड़कर , सुखद करे परिवेश ।
बेहतर जीवन को करे , दे प्रेरक सन्देश ।।
—————————————————
89 चील उड़ी कौआ उड़ा , बचपन उड़ा मलाल ।
लोरी ,गोदी सब उड़े , बस गूगल जंजाल

90 पनघट, पीपल से कहे, बदल गये हैं गाँव।
मैं भी जर्जर हो चुका, बची न तुझमें छाँव।
बची न तुझमें छाँव, जरा का रोग लगा है।
यौवन के सब मीत, वृद्ध का कौन सगा है।
कहाँ नारियाँ दिखे, शीश पर दिखे कहाँ घट।
पायल चूड़ी बिना, आज सूना यह पनघट।

栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀栗‍♀

घरों की शान है बेटी,
पिता का मान है बेटी ।
दुलारी है सदा मां की,
सभी की प्राण है बेटी ।
अगर बेटी नहीं हो तो,
खुशी अंजान होती है ।
सदा सम्मान दो इनको,
बड़ा वरदान है बेटी ।

नहीं ये भार जीवन का,
यही सब का सहारा है।
कभी बनती नहीं बोझा,
असल ये धन तुम्हारा है।
न मारो कोख में इनको,
बड़ी यह भूल है भारी
कभी कमतर नहीं आंको ,
जगत की आदि धारा हैं।

पढ़ाओ बेटियों को तुम,
हमेशा ज्ञान दो इनको ।
सजा के जिंदगी इनकी,
नयी पहचान दो इनको ।
कली सी जब खिले ये तो,
चमन गुलजार हो जाए।
बहारों सा खिले आंगन,
सदा मुस्कान दो इनको।

9

1
कविताये अब मर गई, पृथ्वी बचे न चंद ।
चंद चुटकले हो गये ,मंचो पर मकरंद।।
नारी घर को जोड़ती , रखे सुखद परिवार
पर उसकी किस्मत लिखा , दुखदायक व्यवहार ।।
रहो समजोड़ेाज को , देकर सच्चा प्यार।
सदा एकता में दिखी , ताकत अपरंपार ।।
जीवन को सुंदर बना , मन को रखो पवित्र ।
महकाते सब को रहो , जैसे महके इत्र।।
नारी अब दिखती नहीं , घट रक्खे निज शीश ।।
पनघट सूने हो गए , सूखे आज नदीश
प्रगतिशीलता मर्म है , भावों का अवदान ।
सबके हित तत्पर रहें ,सबका हो कल्याण
शरद ऋतु आयी सखी , नवरस नवलय गात ।
सहज सरस् दिखने लगे ,नव तरुवर के पात ।।

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