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17 Feb 2022 · 1 min read

दोहे

जबतक तन में प्राण है, और रगों में रक्त।
राम राम जपते रहो, सुबह शाम हर वक्त।।

मन बस में रहता नहीं, जर्जर देह मकान।
कच्चे धागे सांस के, अम्बर सम अरमान।।

ढूंँढ रहा है सूर्य क्यों, मंदिर में भगवान।
अपने अंदर झांक तू, ऐ मूरख नादान।।

शब्द सजाकर जो करे, गीत यहाँ तैयार।
रहे सदा नेपथ्य वह, गीतकार बेकार।।

नशाखोर पतिदेव है, आफत में है जान।
आए दिन करता सदा, पत्नी का अपमान।।

सत्य कहा है आपने, सबका है यह हाल।
ज्ञान बांटते हर जगह, आज गुरु घंटाल।।

यू पी की जनता करे, योगी जी आस।
फिर से आए भाजपा, चलता रहे विकास।

बना एम्स फर्टिलाइजर, गोरखपुर में आज।
सभी जिलों में मेडिकल, धन-धन योगीराज।।

किया परिश्रम रात दिन, बिना लगाए तेल।
करे न जो चमचागिरी, हो जाता है फेल।।

झूठ बात शीतल लगे, साँच बात दे आँच।
मुखड़ा पहले साफ कर, तोड़ रहा क्यों काँच।।

सत्य कहो जब भी कहो, या रख बंद जुबान।
सबका मालिक एक है, परम पिता भगवान।।

साँच बात मत बोलिए, लगे हृदय पर चोट।
आह आह करते मिलें, जिनके मन में खोट।।

हद से ज्यादा गिर गया, दुनिया में इंसान।
दो पैसों की चाह में, बेंच रहा ईमान।।

दीन और ईमान की, मत पूछो अब यार।
मजबूरों में ढूंढते, लोग यहांँ बाजार।।

माटी होगा एक दिन, माटी का संसार।
हाय हाय क्यों सूर्य तुम, करते हो बेकार।।

सन्तोष कुमार विश्वकर्मा ‘सूर्य’

Language: Hindi
307 Views
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