दोहे
बहुतेरे वजूद को तरसे,
बादल सागर बरसे,
लेकर लहू नमक चरचे,
इंसान इन बिन तरसे.
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स्वर्ग बनाये बनता है,
नरक मिले सो भोग,
स्वर्ण धातु उपयोग से,
अनजान सो हि जोग
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तेरे विचार मेरे नहीं,
मेरे सो तेरे नाय,
तेरा तुझ को मिले,
दुख काहे होय.
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मेरा सारथी सरल सहज,
तू उससे अनजान,
तुमको मेरी पडी *पैज.
ताते उपजे अभिमान.
*पैज यानि जिद्द