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29 Apr 2023 · 1 min read

दोहे ( किसान के )

अपनी पीड़ा को कभी,कहता नहीं किसान।
परहित में करता रहे, शंकर-सा विषपान।।1

लदा पीठ पर ही रहे, दुःखों का बेताल।
करता रहे किसान से,ऊट पटांग सवाल।।2

कृषक करे श्रम-साधना,बिना थके अविराम।
फसलों का मिलता नहीं,उसको वाजिब दाम।।3

भ्रष्ट व्यवस्था से सदा, शोषित रहा किसान।
आता फिर कैसे भला,सुख का नवल विहान।।4

कैसे रहें किसान के,जुड़े साँस के तार।
पंडित ओझा मौलवी,करें रोग उपचार।।5

गायें फसलें चर गईं, खेत हुए बीरान।
सपनों पर पाला पड़ा,कैसे कहे किसान।।6

भले कृषक की जिंदगी,खुशियों से बेरंग।
शाही रखता है सदा ,वह जीने का ढंग।।7

खेत छोड़कर मार्ग पर ,बैठे जहाँ किसान।
सच मानों उस देश का,मालिक है भगवान।।8
डाॅ बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
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