दोहा
विधा – दोहा
रस – रौद्र रस
तोड़ भरोसा है दिया, था तुम पर अभिमान।
पर ओरत के साथ हो, किया प्रेम अपमान।।
नयन नीर है बह रहा,आँख क्रोध से लाल।
कैसे तुम मन मीत हो, बुरा किया है हाल।।
शर्म कहाँ है बेच दी, किया कर्म संगीन।
निज मर्यादा छोड़ के, बने बड़े रंगीन।
साथ छोड़ के जा रही, तज कर मैं घर द्वार।
माफी कैसे दूं तुम्हें, झूठ तुम्हारा प्यार।।
सीमा शर्मा (अंशु)