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12 Dec 2024 · 1 min read

दोहा सप्तक . . . . मुखौटे

दोहा सप्तक . . . . मुखौटे

लगे छुपाने आजकल , सब असली पहचान ।
आडम्बर से युक्त है, अपनों की मुस्कान ।।

अनगिन परतें आज का, रखता है इंसान ।
उसके असली रूप की, कैसे हो पहचान ।।

आज मुखौटों का बड़ा, आकर्षक संसार ।
मानव इसकी आड़ में, सफल करे व्यापार ।।

मूढ़ बनाकर हो रहा, कितना खुश इंसान ।
बन जाऐ कब स्वयं वो, इससे है अंजान ।।

अन्तस में कुछ और है, अधरों पर कुछ और ।
नयन विकलता से भरे, देख बदलता दौर ।।

परिधानों से सभ्य जो, लगते हैं इंसान ।
खंडित उनका आचरण, करे सभ्य पहचान ।।

परिधानों से व्यक्त कब, होती है पहचान ।
आभासी संसार की, आभासी मुस्कान ।।

सुशील सरना / 12-12-24

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