दोहा सप्तक. . . . . दौलत
दोहा सप्तक. . . . . दौलत
दौलत के बाजार में, रिश्ते हुए गरीब ।
स्वार्थ पूर्ण माहौल में, बदल गई तहजीब ।।
प्रासादों से दूर है, चैन, अमन, आराम ।
दौलत के नीचे दबे, अपने, गैर, तमाम ।।
दौलत ही ईमान है, दौलत ही भगवान ।
दौलत के अंजाम से, गाफिल क्यों इंसान ।।
दौलत वाले का बड़ा, माना होता नाम ।
संचय करता रात दिन, खो देता आराम ।।
दौलत वाले को सभी, समझें अपना नाथ ।
बिकते इस बाजार में, रिश्ते हाथों हाथ ।।
कितनी भी दौलत मिले, भरे न लेकिन पेट ।
करे लालची नित्य ही, अर्थ हेतु आखेट ।।
दौलत दलदल आज का, सबसे गहरा पंक ।
इसमें डूबा वो हुआ , हर रिश्ते से रंक ।।
सुशील सरना / 28-6-24