दोहा सप्तक. . . . जिंदगी
दोहा सप्तक. . . . जिंदगी
कहीं छाँव है जिंदगी, कहीं भयंकर धूप ।
सुख – दुख के परिधान में, बदले अपना रूप ।।
निर्मल नीर सी जिंदगी, लगे बड़ी मासूम ।
इसकी मीठी गंध को, जीवन लेता चूम ।।
बड़ी अजब है जिंदगी, सुख – दुख इसके तीर ।
एक तीर पर कहकहे, एक तीर पर पीर ।।
वर्तमान है जिंदगी, कल तो बीता काल ।
क्या जानें किस साँस यह,बदले अपनी चाल ।।
तटिनी तट पर जिंदगी, खड़ी- खड़ी मुस्काय ।
जीवन रूपी हाथ से, यह फिसली ही जाय ।।
उम्र भर करते रहे, बस औरों की बात ।
समझ सकी न जिंदगी, इस दिल के जज्बात ।।
लदी हुई है जिंदगी, फूल -शूल के संग ।
मुश्किल है पहचानना, इसके कितने रंग ।।
सुशील सरना / 25-5-24