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24 Jun 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . . . .

मन से विस्मृत हो भला, कैसे पहला प्यार।
मुदित नयन में वो करे, सदा स्वप्न शृंगार ।।

हर मौसम का प्राण है , सुधियों का संसार ।
तड़प बढ़ा दे और भी, सावन की बौछार ।।

सावन में अच्छी नहीं, आपस में तकरार ।
छोड़ो भी अब रूठना, मानो भी मनुहार ।।

रुख़सारों पर अब्र की, बारिश करे कमाल ।
दर्पण देखा हो गए , सुर्ख शर्म से गाल ।।

याद पिया की आ गई, आई जो बरसात ।
मुश्किल अब तो हो गई, पिया काटनी रात ।।

सुशील सरना/24-6-24

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