दोहा पंचक. . .
दोहा पंचक. . .
अनुपम संध्या प्रीति की, अनुपम इसकी भोर ।
यौवन में थमता नहीं, मौन तृषा का शोर ।।
आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फ़त के अंजाम ।
तन्हा बीते दिन यहाँ, तन्हा बीते शाम ।।
जिसकी खातिर इश्क में, खूब हुए बदनाम ।
उसकी यादों ने दिये , इन हाथों में जाम ।।
बिना पंख सम्भव नहीं, कोई भी परवाज़ ।
अंतस के हर भेद का, नयन खोलते राज ।।
वफा न जाने बेवफ़ा ,क्या उस पर इल्जाम ।
खाया फरेब इस तरह, इश्क हुआ बदनाम ।।
सुशील सरना / 30-12-23