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23 Dec 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . .

दोहा पंचक. . .

बाण न आये लौट कर, लौटें कभी न प्राण ।
काल गर्भ में है छुपा, साँसों का निर्वाण ।।

नफरत पीड़ा दायिनी, बैर भाव का मूल ।
जीना चाहो चैन से, नष्ट करो यह शूल ।।

आभासी संसार में, दौलत बड़ी महान ।
हर कीमत पर बेचता , बन्दा अब ईमान ।।

अन्तर्घट के तीर पर, सुख – दुख करते वास ।
सूक्ष्म सत्य है देह में, वाह्य जगत आभास ।।

जीवन मे होता नहीं, जीव कभी संतुष्ट ।
सब कुछ पा कर भी सदा, रहे ईश से रुष्ट ।।

सुशील सरना / 23-12-24

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