दोहा पंचक. . .
दोहा पंचक. . .
बाण न आये लौट कर, लौटें कभी न प्राण ।
काल गर्भ में है छुपा, साँसों का निर्वाण ।।
नफरत पीड़ा दायिनी, बैर भाव का मूल ।
जीना चाहो चैन से, नष्ट करो यह शूल ।।
आभासी संसार में, दौलत बड़ी महान ।
हर कीमत पर बेचता , बन्दा अब ईमान ।।
अन्तर्घट के तीर पर, सुख – दुख करते वास ।
सूक्ष्म सत्य है देह में, वाह्य जगत आभास ।।
जीवन मे होता नहीं, जीव कभी संतुष्ट ।
सब कुछ पा कर भी सदा, रहे ईश से रुष्ट ।।
सुशील सरना / 23-12-24