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7 Dec 2024 · 1 min read

दोहा पंचक . . . सच-झूठ

दोहा पंचक . . . सच-झूठ

जीवन की सच्चाइयाँ, माना काँटेदार ।
मिश्री जैसा झूठ पर, देता दर्द अपार ।।

झूठा ढूँढे झूठ का, नित्य नया आधार ।
सच्चा करता सत्य से, जीवन का शृंगार ।।

सत्य यही है झूठ तो, शोर करे घनघोर ।
सत्य मौन इसकी मगर, लम्बी जीवन डोर ।।

चकाचौंध में झूठ की, लगता सत्य निरीह ।
कंटक पथ पर भी कभी ,सत्य न लगे अनीह ।।
अनीह = उदासीन

सत्य सदा संसार में, रहता है निर्भीक ।
मिटा न पाता सत्य की ,झूठ जगत में लीक ।

सुशील सरना / 7-12-24

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