दोहा पंचक . . . सच-झूठ
दोहा पंचक . . . सच-झूठ
जीवन की सच्चाइयाँ, माना काँटेदार ।
मिश्री जैसा झूठ पर, देता दर्द अपार ।।
झूठा ढूँढे झूठ का, नित्य नया आधार ।
सच्चा करता सत्य से, जीवन का शृंगार ।।
सत्य यही है झूठ तो, शोर करे घनघोर ।
सत्य मौन इसकी मगर, लम्बी जीवन डोर ।।
चकाचौंध में झूठ की, लगता सत्य निरीह ।
कंटक पथ पर भी कभी ,सत्य न लगे अनीह ।।
अनीह = उदासीन
सत्य सदा संसार में, रहता है निर्भीक ।
मिटा न पाता सत्य की ,झूठ जगत में लीक ।
सुशील सरना / 7-12-24