दोहा पंचक. . . . शृंगार
दोहा पंचक. . . . शृंगार
हुए बंध निर्बंध सब, अधर हुए अंगार ।
तिमिर मौन खंडित हुआ, बिखरा हरसिंगार ।।
दृग से दृग अभिसार का, अजब हुआ परिणाम ।
स्वप्न हरित करते रहे, नयनों का नव धाम ।।
कहने को कुछ भी नहीं, रहा लबों के पास ।
दूर हुए आई समझ , क्या होती है प्यास ।।
नयनों से काजल गिरा ,गिरे केश से फूल ।
संयम के फिर हो गए , बंध सभी निर्मूल ।।
सुशील सरना / 10-11-24