दोहा पंचक. . . विविध
दोहा पंचक. . . विविध
सम्बोधन से हो गया, मधु शब्दों का लोप ।
सम्बन्धों को लीलता, शब्द शरों का कोप ।।
परिवर्तन हर क्षेत्र में, करता नव संचार ।
जीवन के इस सत्य को, सहज करो स्वीकार ।।
सोच समझकर थामना, हमदर्दों का हाथ ।
बीच राह में छोड़ते, छद्मी अपना साथ ।।
जिसको देखो आजकल, देता है उपदेश ।
अर्थ न जाने सत्य का, बन बैठा दरवेश ।।
विश्लेषण किसने किया, घटित हुई क्यों भूल ।
कारण अनदेखा किया, भ्रम की हटी न धूल ।।
सुशील सरना / 13-11-24