दोहा पंचक. . . . . वर्षा
दोहा पंचक. . . . . वर्षा
अम्बर में मेघा चले, ले सागर से नीर ।
धरती के हर ताप की,हरने आए पीर ।।
कड़ – कड़ कड़के दामिनी, घन गरजे घनघोर ।
दादुर करते चहुँ तरफ , टर्र -टर्र का शोर ।।
दिनकर तेरे ताप का, वक्त गया है बीत ।
अब बरखा का रात दिन, गूँजेगा संगीत ।।
बरसे मेघा झूम कर, शीतल पड़ी फुहार ।
हर्षित हर मन हो गया, भीगी चली बयार ।।
आई बरखा थम गया, रेतीला तूफान ।
मरीचिका ओझल हुई, महका रेगिस्तान ।।
सुशील सरना / 21-6-24