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21 Jun 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . वर्षा

दोहा पंचक. . . . . वर्षा

अम्बर में मेघा चले, ले सागर से नीर ।
धरती के हर ताप की,हरने आए पीर ।।

कड़ – कड़ कड़के दामिनी, घन गरजे घनघोर ।
दादुर करते चहुँ तरफ , टर्र -टर्र का शोर ।।

दिनकर तेरे ताप का, वक्त गया है बीत ।
अब बरखा का रात दिन, गूँजेगा संगीत ।।

बरसे मेघा झूम कर, शीतल पड़ी फुहार ।
हर्षित हर मन हो गया, भीगी चली बयार ।।

आई बरखा थम गया, रेतीला तूफान ।
मरीचिका ओझल हुई, महका रेगिस्तान ।।

सुशील सरना / 21-6-24

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