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29 Jun 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . मेघ

दोहा पंचक. . . मेघ

श्वेत हंस आकाश में, करते मुक्त विहार ।
बिन बरसे ही मेघ ये, लौट गए हर बार ।।

मेला मेघों का लगा, अम्बर के उस पार ।
आज लुटाने आ गए, तृषित धरा पर प्यार ।।

आए मेघा आ गई, याद पुरानी बात ।
देह पृष्ठ पर लिख गईं, प्रेम ग्रन्थ बरसात ।।

काले मेघों से हुई, रिमझिम जब बरसात ।
बड़ी सुहानी सी लगी, बाहुपाश की रात ।।

आया सावन झूम कर, गजब हुई बरसात ।
उन्मादों के दौर में, खूब हुए उत्पात ।।

सुशील सरना / 29-6-24

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