दोहा पंचक. . . मेघ
दोहा पंचक. . . मेघ
श्वेत हंस आकाश में, करते मुक्त विहार ।
बिन बरसे ही मेघ ये, लौट गए हर बार ।।
मेला मेघों का लगा, अम्बर के उस पार ।
आज लुटाने आ गए, तृषित धरा पर प्यार ।।
आए मेघा आ गई, याद पुरानी बात ।
देह पृष्ठ पर लिख गईं, प्रेम ग्रन्थ बरसात ।।
काले मेघों से हुई, रिमझिम जब बरसात ।
बड़ी सुहानी सी लगी, बाहुपाश की रात ।।
आया सावन झूम कर, गजब हुई बरसात ।
उन्मादों के दौर में, खूब हुए उत्पात ।।
सुशील सरना / 29-6-24