दोहा पंचक. . . . मतभेद
दोहा पंचक. . . . मतभेद
इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।
चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।
मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।
एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।
रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।
सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।
मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।
सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।
जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।
जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।
सुशील सरना / 19-11-24