दोहा पंचक. . . . मंथन
दोहा पंचक. . . . मंथन
मन ने जब मंथन किया, हासिल हुआ अतीत ।
स्वरित हुआ हर साँस में, कर्मों का संगीत ।।
मन मंथन जब-जब करे, मन के मिटें विकार ।
मन में पंकज सम उदित , होते शुद्ध विचार ।।
मन ने जब मंथन किया, बहुत मिले किरदार ।
सब के सब ऐसे लगे, झूठों के सरदार ।।
मंथन अपने आप का, जो करता इंसान ।
अपने कर्मों की उसे , हो जाती पहचान ।।
मंथन से मन के सभी, खुल जाते हैं द्वार ।
अन्तर्घट के व्योम में, पावन चले बयार ।।
सुशील सरना / 24-5-24