दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि
दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि
गंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर ।
कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे डोर ।।
अलिकुल की गुंजार से, सुमन हुए भयभीत ।
गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।
आशिक भौंरे दिलजले, कलियों के शौकीन ।
क्षुधा मिटा कर दे गए, घाव उन्हें संगीन ।।
पुष्प मधुप का सृष्टि में, रिश्ता बड़ा अजीब ।
दोनों के इस प्रेम को, लाती गंध करीब ।।
पुष्प दलों को भा गई, अलिकुल की गुंजार ।
मौन समर्पण कर दिया, मुखर हुआ अभिसार ।।
सुशील सरना / 27424