दोहा पंचक. . . . . नेता
दोहा पंचक. . . . . नेता
नेताओं का हो गया, हो हल्ला अब शांत ।
मांज रहे आराम से, झूठ सने अब दाँत ।।
जनता का धन लूटकर , करें लोक कल्याण ।
कब पिघले यह दर्द से, नेता सम पाषाण ।।
नेताओं का धर्म क्या , क्या इनका ईमान ।
इनका तो संसार में, कुर्सी है भगवान ।।
वादों की ले टोकरी, घूमे ये चौपाल ।
कौन पूछता जीत कर, जनता का फिर हाल ।।
कुर्सी नेता का हुआ, आज बड़ा अरमान ।
लेकिन जन तकलीफ पर, नेता करें न ध्यान ।।
सुशील सरना / 20-6-24