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20 Dec 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . दिन चार

दोहा पंचक. . . . दिन चार

निर्भय होकर कीजिए, करना है जो काम ।
ध्यान रहे उद्वेग में, भूल न जाऐं राम ।।

कितना अच्छा हो अगर, मिटे हृदय से बैर ।
माँगें अपने इष्ट से, सकल जगत् की खैर ।।

सच्चे का संसार में, होता नहीं अनिष्ट ।
रहता उसके साथ में, उसका अपना इष्ट ।।

पर धन विष की बेल है, रहना इससे दूर ।
इसकी चाहत के सदा, घाव बनें नासूर ।

चादर के अनुरूप ही, अपने पाँव पसार ।
वरना फिर संघर्ष में, बीतेंगे दिन चार ।।

सुशील सरना / 20-12-24

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