दोहा पंचक. . . . . आभार
दोहा पंचक. . . . . आभार
परिभाषा कब प्रेम की, पढ़ पाया संसार ।
जिसने जाना प्रेम को, दर्शाया आभार ।।
करते जो उपकार का, व्यक्त सदा आभार ।
सज्जन वो ही अन्यथा , कहलाते मक्कार ।।
किये गए उपकार का, व्यक्त करो आभार ।
लक्षित इससे आपके , होते हैं संस्कार ।।
जो भी फल है कर्म का, सहज करो स्वीकार ।
हाथ जोड़ कर ईश का, व्यक्त करो आभार ।।
कंटक पथ है लक्ष्य का, चलना सोच विचार ।
दूर करे अवरोध जो, उसको दो आभार ।।
सुशील सरना / 26-6-24