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26 Jun 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . आभार

दोहा पंचक. . . . . आभार

परिभाषा कब प्रेम की, पढ़ पाया संसार ।
जिसने जाना प्रेम को, दर्शाया आभार ।।

करते जो उपकार का, व्यक्त सदा आभार ।
सज्जन वो ही अन्यथा , कहलाते मक्कार ।।

किये गए उपकार का, व्यक्त करो आभार ।
लक्षित इससे आपके , होते हैं संस्कार ।।

जो भी फल है कर्म का, सहज करो स्वीकार ।
हाथ जोड़ कर ईश का, व्यक्त करो आभार ।।

कंटक पथ है लक्ष्य का, चलना सोच विचार ।
दूर करे अवरोध जो, उसको दो आभार ।।

सुशील सरना / 26-6-24

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