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21 Aug 2024 · 1 min read

दोहा दशम. . . . यथार्थ

दोहा दशम. . . . यथार्थ

अपने बेगाने हुए, छोड़ा सबने साथ ।
हाथ काँपते ढूँढते, अब अपनों का हाथ ।1।

बरगद बूढ़ा हो गया, पीत हुए सब पात ।
मौसम बीते दे गए, अश्कों की सौगात ।2।

वृद्धों को बस चाहिए, थोड़ा सा सम्मान ।
अवसादों को छीन कर , उनको दो मुस्कान ।3।

बहते आँसू कह रहे, व्यथित हृदय की बात ।
जरा काल में ही दिए, अपनों ने आघात ।4।

कौन मानता है भला, अब वृद्धों की बात ।
बात बात पर अब मिले, तानों की सौगात ।5।

आँखों से आँसू बहें, मुँह से टपके लार ।
लघु शंका बस में नहीं, देह हुई लाचार ।6 ।

वृद्धों की हर बात का, होता अब उपहास ।
याद करें एकांत में, वो बीते मधुमास ।7।

धीरे-धीरे ढह गए, स्वप्निल सारे दुर्ग ।
तन्हा देखे मोड़ पर, बीता वक्त बुजुर्ग ।8।

दृग जल हाथों पर गिरा, टूटा हर अहसास ।
काया ढलते ही लगा, सब कुछ था आभास ।9।

जीवन पीछे रह गया, छूट गए मधुमास ।
जर्जर काया क्या हुई, टूट गई हर आस ।10।

सुशील सरना /

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