दोहा त्रयी. . .
दोहा त्रयी. . .
तिमिर लोक में प्रेम का, अद्भुत है इतिहास ।
सुर्ख साँझ के साथ ही, बढ़े मिलन की प्यास ।।
मन का पंछी जानता , मन के सब जज्बात ।
बेकाबू आगोश में, फिर होते हालात ।।
बंधन टूटे लाज के, टूटे सब इंकार ।
अधरों को अच्छे लगे, अधरों के अभिसार ।।
सुशील सरना 16-9-24