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15 Dec 2024 · 1 min read

दोहा त्रयी. . . . . प्रेम

दोहा त्रयी. . . . . प्रेम

प्रथम प्रणय अनुभूति का, चिर जीवी आनन्द ।
रोम – रोम सुरभित करे, मंद प्रेम मकरंद ।।

प्रेम पाश में कब रहा, श्वेत श्याम का ध्यान ।
मदन भाव के वेग में, मचल उठे अरमान ।।

प्रणय क्षुधा कब मानती, सांसारिक प्रतिबंध ।
बाँधे अपने पाश में , इसकी स्वप्निल गंध ।।

सुशील सरना / 15-12-24

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