दोहा चौका. . . . रिश्ते
दोहा चौका. . . . रिश्ते
हृदय कुंड में विष भरा, नकली है मुस्कान ।
रौंद रहा है स्वार्थ में, रिश्तों को इंसान ।।
रिश्ते कागज पुष्प से, आज हुए निर्गंध ।
तार – तार सब हो गए,अपनेपन के बंध ।।
बदला युग के साथ में, रिश्तों का भी रूप ।
अपनेपन को लीलती, अब मतलब की धूप ।।
रिश्तों की तकलीफ में, होती है पहचान ।
साथ चले जो अंत तक, वो सच्चा इंसान ।।
सुशील सरना / 22-8-24