दोहा ग़ज़ल …..(सुगंध )
दोहा ग़ज़ल …..(सुगंध )
पावन नजरें हों अगर , पावन हों सम्बंध ।
पावन रिश्तों में बहे , पावन प्रेम सुगंध ।
जब होती हैं स्वार्थ की,आपस में तकरार ,
रेशा – रेशा प्यार का, देता है दुर्गंध ।
बहुत मधुर है प्यार की, बातों का संसार ,
जीवन भर जाती नहीं, ऐसी अद्भुत गंध ।
समझ न पाए आज तक,पावनता का अर्थ ,
पावन बंधों में बहे , मौन गंध निर्बंध ।
कितना सुन्दर हो अगर, पावन चले बयार ,
महकें मलयज गंध से, जीवन के अनुबंध ।
सुशील सरना / 17-5-24