दोस्त हो जो मेरे पास आओ कभी।
गज़ल
क़ाफ़िया – ओ
रद़ीफ – कभी
212……212……212……212
दोस्त हो जो मेरे पास आओ कभी।
कुछ हॅंसाओ हॅंसो रूठ जाओ कभी।
रास्ते एक हैं मंजिलें एक हैं,
साथ आओ कभी साथ जाओ कभी।
नफ़रतें हों खतम आपसी प्यार हो,
क्या है हिन्दू व मुस्लिम हटाओ कभी,
ये जो झगड़े लड़ाई हैं मुमकिन सभी,
दिल में अपने दरारें न लाओ कभी।
सिर्फ धनवान लोगों से क्यों वास्ता,
मुफलिसों को भी अपना बनाओ कभी,
आप ख्वाबों में आते हो अक्सर मेरे,
तो हकीकत में भी पास आओ कभी।
प्यार प्रेमी से कर लो यही इल्तिज़ा,
प्यार का गीत फिर गुनगुनाओ कभी।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी