दोस्त एक कारगर
दोस्त,
चारागर(वैद्य) है,
जिसे हालेदिल सुनाकर,
तकलीफोँ को बताकर,
रोगोँ से निज़ात पा लेते हैँ ।
दोस्त
सुहानी डगर है,
जिस पर दो पल टहल कर,
प्रकृति को निहारकर,
थकान मिटा लेते हैँ ।
दोस्त
वह कन्धा है,
जिसपर सर रखकर,
दो अश्रु बहाकर,
दो घङी रोकर,
दिल हलका कर लेते हैँ,
दोस्त
एक आइना है,
सच का सामना है,
क्या अच्छा, क्या बुरा,
इससे कब छुपना है?
देखकर छवि अपनी
सूरत सँवार लेते हैँ,
दोस्त
एक इबादत है
कुरान की पाक आयत है,
बन्दे पर खुदा की
मासूम सी इनायत है,
दोस्त की सूरत मेँ खुदा का
दीदार कर लेते हैँ,
खुशनसीब हूँ मैँ कि
दोस्त ऐसे पाये,
जैसे जेठ की धूप मेँ
घने दरख्तोँ के साये,
तले बैठकर जिनके
दरम्यानेराह सुस्ता लेते हैँ ।
Chitra Kumar Gupta