दोस्ती।
दोस्ती।
दोस्ती बहुत बार बड़ी आसानी से हो जाती है। एक ऐसा इंसान हमारी जिंदगी में आ जाता है,जो प्यार और विश्वास की खुशबू लेकर आता है। हमारी परवाह करता है। हमारा दुःख दूर करने की कोशिश करता है।
हमारे दिल की हर बात सुनता है और अपनी भी बताता है। हमारी खुशी में खुश होता है। गमों को समझता है।
लेकिन फिर भी बहुत बार,बहुत-से लोग दोस्ती की कद्र नहीं कर पाते। उनके अंदर का स्वार्थ दोस्ती पर भारी हो जाता है। अपनी बेमानी आदतें,बेवकूफियाँ लाख बार समझाने पर भी छोड़ नहीं पाते। दोस्ती को बस एक बेकद्री का रिश्ता बना देते हैं।
उन्हें लगता है जो दोस्ती आसानी से बन गई, वो आसानी से बनी भी रहेगी। जो दोस्ती एक वरदान की तरह मिल जाती है उसे महत्वहीन बनाने लग जाते हैं।
अपने दोस्त की हर बात की उपेक्षा करने लगते हैं। जो उनके हर दुःख में,हर गम में साथ देता है उस दोस्त के हर दुःख पर उन्हें हंसना आता है।
दोस्त की हर बात,हर जरूरत को अनदेखा और अनसुना करते रहते हैं। जो दोस्त हर जगह साथ देता है उसे तुच्छ समझने लगते हैं।
और विडम्बना देखिए फिर कहते हैं,कोई अच्छा दोस्त नहीं बनता। कोई दोस्ती निभाता नहीं है। मतलब ये कि खुद ही दोस्ती की बेकद्री करनी है और खुद ही शिकायत करनी है…।
खून के रिश्तें भी अपना सम्मान और प्यार मांगते हैं तो क्या दोस्ती इन सब के बिना चल पाएंगी? परवाह,चाहत हर रिश्ता चाहता है तो दोस्त क्यों नहीं? विश्वास, यकीन,भरोसा का मतलब सब सम्बन्धों
के लिए एक है तो मित्रता के लिए क्यों नहीं? फर्ज और क़द्र हर रिश्तें की ज़रूरत होती है तो हमारी दोस्ती इस सच्चाई से परे नहीं है। दोस्ती तो बनती ही प्यार की बोली से है तो कड़वी ज़बान क्यों दोस्ती में?
दोस्त और दोस्ती के छूटने और टूटने का कारण बहुत बार हमारे खुद के अंदर छिपा होता है। समय रहते अगर दोस्ती सम्भाल ली तो अच्छा है नहीं तो दोस्त को जिंदगी से दूर होते समय नहीं लगता। बहुत बार ये हो जाता है कि हम बातों ही बातों में अपने दोस्त का दिल दुखा देते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए। बातचीत में सत्य के साथ-साथ महत्व और सम्मान भी बनाएं रखें। दोस्त को सम्मान दें,बेवजह तानें नहीं। दोस्त की कभी भी पीठ पीछे बुराई न करें,क्योंकि शब्द भी हवा होते हैं इसका अहसास हो जाता है, पता चल जाता है।
दोस्त को रूढने पर मनाना भी सीखे। दिल दुखाने वाली बातें कभी भी न कहें। कई लोगों को लगता है कि अगर मित्रता है तो कुछ भी गलत और दिल दुखाने वाला कह दो,क्या ऐसा सोचना सही है? ऐसे लोगों को लगता है कि मित्र की बार-बार उपेक्षा करते रहो,कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा।
दोस्त भी अभिवादन और हाल-चाल पूछना चाहते हैं तो ये शिष्टाचार जरूरी है मित्रता में भी। अगर दोस्त का कोई फोन आए तो इग्नोर न करें समय मिलते ही उत्तर दें। अगर दोस्त आपका ध्यान रखता है तो आप भी रखें।
दोस्ती भी महत्व चाहती है,कद्र चाहती है। रिश्तें बनाना इतनी बड़ी बात नहीं निभाना बड़ी बात है। जैसे पौधें धूप,हवा,पानी,खाद्य और पूरी देखभाल चाहते हैं वैसे ही दोस्ती भी।
दोस्ती करें तो निभाने सीखें। दोस्त बनाए तो मनाना सीखे। दोस्ती के नाते को इतने हल्के में न लें कि रिश्ता हवा में उड़ जाए। दोस्त को उतना ही महत्व दो जितना दूसरे रिश्तों को देते हैं। बल्कि कई बार दोस्ती इतनी काम आती है कि जितने दूसरे नहीं।
दोस्त की कद्र करें नहीं तो दोस्ती अपनी कद्र खो देगी। वक्त रहते दोस्ती संभाल लें नहीं तो दोस्ती खत्म होते देर नहीं लगती।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित, मौलिक
द्वारका मोड़,द्वारका,नई दिल्ली-78