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7 Aug 2022 · 1 min read

दोनों हाथ लूटता माल है

* दोनों हाथ लूटता माल है *
***********************

मेरे देश का बुरा हाल है,
दोनों हाथ लूटता माल है।

बदली राजनीति के मायने,
अब सेवा रही नहीं जाल है।

सरकारी निजीकरण हो रहा,
बेबस सी विकास की चाल है।

खुद ही खुद हमी रहें नोचते,
तन पर भी रही नहीं खाल है।

सोने की चिड़ी रही लूट रही,
क्यूं खामोश हो रही ढाल है।

मनसीरत तना बना सोचता,
क्यों भारत फ़क़ीर कंगाल है।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
60 Views
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