“ दोनों तरफ है प्रेम -विछोह “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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तुम्हारी याद आती है ,
मुझे रह रह सताती है !
करूँ क्या तू बता दे ,
मेरी तो जान जाती है !!
मुझे तुमसे ही नाता है ,
नहीं कुछ मुझको भाता है !
तड़पता हूँ तुम्हारे बिन ,
मुझे नहीं चैन आता है !!
सब दिन मैं सँवरती हूँ ,
नव-नव शृंगार करती हूँ !
तुम्हारी ही प्रतीक्षा में ,
मैं दिन रात तड़पती हूँ !!
हमारी तड़प ही ऐसी है ,
सुलगती आग जैसी है !
ना बुझती है अकेले ही ,
ये तो दावाग्नि जैसी है !!
अब तो नहीं मैं रह सकूँगी ,
विछोह को ना सह सकूँगी !
आप जो अब फिर न आए ,
प्राण को मैं अपनी तजूँगी !!
धैर्य रख लों हम मिलेंगे ,
प्रेम को मिटने ना देंगे !
मिलन तो होगा हमारा ,
प्रेम -पुष्प खिलते रहेंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
20 . 02. 2022.