दे रहा जो आसमाँ आवाज़ की बातें करो
दे रहा जो आसमाँ आवाज़ की बातें करो
इन परिन्दों की कभी परवाज़ की बातें करो
वो बुलन्दी पर जो पहुँचा बात तक करता नहीं
उसके तेवर उसके हर अन्दाज़ की बातें करो
उसको छोड़ो वो ज़ुबाँ से बोलता कुछ और है
ख़त में लिक्खे प्यार के अल्फ़ाज़ की बातें करो
लौट सकता अब नहीं गुज़रा हुआ जो वक़्त है
भूल जाओ जो हुआ आग़ाज़ की बातें करो
आबोदाना डालकर के जाल ऊपर से ढका
वो शिकारी है बड़ा अरबाज़ की बातें करो
ज़ोर से बोलो नहीं दीवार के भी कान हैं
कान से बस मुँँह लगाकर राज़ की बातें करो
प्यार की सरगम जहाँ में ख़ूब फैले हर तरफ़
साजे-दिल संगीत का है साज़ की बातें करो
आज उसके दुश्मनों की है तबीयत कुछ भली
आजकल ‘आनन्द’ है नासाज़ की बातें करो
शब्दार्थ:- अरबाज़ = निपुण/चतुर, नासाज़ = अस्वस्थ/असंतुष्ट
– डॉ आनन्द किशोर