देश के कण कण में उनके गीत
बचपन से संगीत था भाया
सूर ताल थीं उनकी आराध्या
धरा की सरस्वती थीं
संगीत की अधिष्ठात्री थीं
पुत्री थीं वो वाणी की
साधक थीं वो संगीत की
रग रग में संगीत समाया था
जीवन को संगीतमय बनाया था
सूरज की पहली किरण में
कल कल बहती धारा में
मंद मंद बहते वयार में
गीत उन्ही के रचते थे
संगीत ही थे उनके साथी
सूर ताल मन के मीत
संतान सदृश दुलारती थीं
गीत संग प्रेम, उनकी थी अपरिमित
घर घर की थीं वो सदस्या
घर घर सुने जाते उनके गीत
संगीत प्रेमी की हैं पूज्या
हृदय में अनंत तक रहेंगे उनके गीत
स्वयं कंठ में आसीन थीं सरस्वती
वाणी जब स्वर लहरियां सुनाती थीं
ब्रह्मांड भी तन्मय हो सुनते थे
अतुल्य, अद्वितीय हैं सभी मानते थे
देश के कण कण में उनके गीत
अनंत काल तक अमर रहें
चिर काल तक श्रवण होते रहें स्वर
सदा ही गाते रहें अधर
स्वर साम्राज्ञी,स्वर कोकिला
सदा ही अमर रहें संगीत की दुहिता
चिर निद्रा में सो गईं
नीर भर गईं नयनों में