देख विस्तार , काँपने लगे हम….
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KHafef musaddas maKHbuun mahzuuf
faa’ilaatun mufaa’ilun fa’ilun
2122 1212 112
देख विस्तार , काँपने लगे हम
अपना क़द फिर से, नापने लगे हम
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हम थे बेबस यही, मलाल रहा
आइना साफ ढाँपने लगे हम
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हर सहूलत यहाँ इमान बिका
हाशिये पर ये छापने लगे हम
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ढूंढ लो आदमी बगैर पता
वोट जंगल ये भांपने लगे हम
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काश अच्छे दिनों की जाप न हो
आँच आसान तापने लगे हम
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
14.4.24