दूर से यूँ तो नज़र अपनी सी आई दुनिया
दूर से यूँ तो नज़र अपनी सी आई दुनिया
पर कभी हमको ही अपना नहीं पाई दुनिया
मुफलिसी ने गले क्या हमको लगाया देखो
हो गई अपनी से फ़ौरन ही पराई दुनिया
धर्म ईमान हुआ आज यहाँ बस पैसा
सोचता रब भी ये होगा क्यों बनाई दुनिया
हार कह दें इसे या जीत कहें ये अपनी
हमने हँस के तो कभी रो के निभाई दुनिया
घाव उसको भी मिले कम नहीं नफरत के
प्यार के फूलों से भी जिसने सजाई दुनिया
‘अर्चना’ छोड़ने का इसको न मन करता है
कैसे ये कह दें कि हमको तो न भाई दुनिया
07-02-2018
डॉ अर्चना गुप्ता