दुल्हन ही दहेज है
“दुल्हन ही दहेज है” (भोजपुरी) यह कहानी शुरू होता है एक छोटी सी गांव से, जिसमें दूल्हा का नाम चंदन है और दूल्हा का बहन का नाम चमेली है जो चंदन से बड़ी है और इसमें भूमिका उनकी मां का भी है।
एक गांव में एक दिन एक दूल्हा – दुल्हन की शादी होती है और दूल्हा, दुल्हन को अपने घर लेकर के आता है। दूल्हा के घर में चारों तरफ चहल-पहल रहता है पर दूल्हा के जीवन में उसकी बड़ी बहन जहर घोलती है।
||पहला दृश्य||
(कहानी का पहला दृश्य शुरू होता है तब जब दुल्हन अपने घर में हैं और दूल्हा के मां और उसकी बहन द्वारघारा में है उसी समय दूल्हा अपने मां के पास से जब गुजरता है तब उसकी बहन उससे कहती है)
चमेली – बबुआ अब चिनहाते नईखे।
चंदन – (चलते हुए) का दीदी तेहू मजाक करत रहेली रे
(तब तक उसकी बहन चमेली उसे बोलाती है और उससे पूछती है)
चमेली – का भईल हरे, गडिया ना देलहवसन का।
(तब तक उसकी मां बोलती है)
मां – आ मिलल रहित तs ना आईत, एकरा बाप के कहनी मत करी ओहिजान शादी, गरीब बा ऊ कहां से दान दहेज दी, पर एकर बाप ना मनलख।
चमेली – (अपनी मां से कहती है) हम तोरा से ना कहनी, कि अपना ननद के देयादिन के बेटी से शादी करा देतानी, तs तनी के बात ना मनलसs। ऊ धनीक बाडसन दान दहेज ढेखान देतऽसन। उत अभिनतले कहत रलहवसन की अपना भाई से शादी करादी। दहेज में बुलेट मोटरसाइकिल देदेम, लइका के खातिर सोना के सिकडी बनवादेम, चार लाख रुपया देदेम।
मां – ईतs सिकडीके के कहे जवन गाड़ी तय कईले रखs तवन देबे ना कईलख।
चमेली – रे बाबुओं ते हेने सुना। ते ओकरा लगे जईबे मत कर। जब तले ओकर बाप गाड़ी नईके पहुंचावत तब तक ते ओकरा लगे सुते जईबे मत कर। अपने अपना बाप से फोन कके रोई – गाई आ कही तs ओकर बाप गाड़ी लेयाके पहुंचाई। ना पहुंचाई नू तs छोड़ दिए एकरा के, हम तोर बढ़िया घर में शादी करादेम दहेज दुनिया के मिली।
||दूसरा दृश्य||
(रात का समय है दूल्हा अपनी दुल्हन वाली घर में जब सोने के लिए जाता है तब तक उसकी बहन आती है और कहती है)
चमेली – रे बबुओ रे ओने कहां जातारी रे..। भलनु समझौनी हई की ओने नईखे जाएके।
चमेली – (हाथ से इशारा करते हुए फिर कहती है) हे घर में चलके सुत।
(इस तरह बेचारा दूल्हा अपनी पत्नी के पास नहीं सो पाता है और पहली रात, दूसरी रात करते – करते सप्ताह भर बीत जाता है।)
||तीसरा दृश्य||
(आठवें दिन जब रात होती है तब दूल्हा चुपके से छिपकर अपने पत्नी के पास जाकर सो जाता है। तब तक उसकी बहन चमेली रोज की तरह खोजते – खोजते उसके कमरे में घुस जाती है। तब देखती है कि वह पलंग पर सोया हुआ है। तब चमेली, चंदन (दूल्हा) का कालर पकड़ते हुए उसे जगाती है और दूसरे घर में ले जाती है।)
चमेली – रे बबुओ चल उठ, चल हो घर में।
(इस तरह उस दुल्हन की सेज रोज की तरह आज भी खाली रह जाता है। इस तरह दुल्हन को अपने साजन के इंतजार में आठ – नौ रात बीत जाते हैं पर उसका साजन चंदन के साथ सुहागरात नहीं बितता है और बार-बार दहेज की खोबासना मिलता है। इस तरह की खोबासना उससे सहा नहीं जाता है और वह किरोसीन तेल गिराकर जल जाती है। जब किरोसीन तेल डालकर जलकर मर जाती है तब घरवाले का करते हैं कि गैस सिलेंडर लाकर के घर में रख कर के लोगों को देखा कर यह बहाना बनाते हैं कि गैस पर खाना बनाने गई तब तक उनके साड़ी में आग पकड़ लिया और जलकर मर गई। इस तरह खबर सुनकर गरीब बेटी के गरीब बाप आता है और कुछ कर नहीं पाता है। जिसके चलते इन लोगों पर कोई पुलिस कार्यवाही नहीं हो पाता है और ये लोग निक सुख बच जाते हैं।)
||चौथा दृश्य||
(जैसे ही यह घटना घटती है चमेली (दुल्हे की बहन) अपने ससुराल भाग जाती है और वही से शादी की बात चलाने लगती है की फिर से चंदन का विवाह कहीं दूसरी जगह किया जाए पर यह खबर सुनकर के लोग अपनी बेटी का शादी इनके घर करना नहीं चाहते हैं इस तरह से चंदन की शादी कहीं हो नहीं पाता है। कुछ दिन बीत जाने के बाद जब चंदन अपने गांव में पैदल घूमते हुए निकलता है तब देखता है कि कुछ गांव की महिलाएं उसे देख कर के आपस में फुसुर – फुसुर बातें कर रही है)
पहली महिला – ए सुनना जर के मर गईल। अब एकरा घर में कवन अपना बेटी के शादी करी।
दूसरी महिला – हs…. सही कहतारू, बार – बार दहेज के खोबासना देत रलहवसन।
तीसरी महिला – आरे जानsतारू हम तs इहो सुननी की एकर मतरिया आ एकर बहिनिया दुल्हनिया लगे एकरा के कबो ना जाए देत रलहवसन।
(इस तरह हर जगह लोग इन को देखते हैं चर्चा करने लगते हैं कि कौन इसके घर अब अपनी बेटी की शादी करेगा। इस तरह अब इनके कानों में मात्र एक ही आवाज गूंजती है जिसको सुन – सुनकर ए पागल के जैसा हो जाता है और घर में ना रह कर यह घर से दूर एक खलिहान में पहुंचता है जहां पुज (पुलाव) लगा हुआ है। वहां पर बैठ जाता है तब तक बहुत सारे लोग वहां जमा हो जाते हैं तब वह रोते हुए बार-बार लोगों से यह अपील करता है।)
चंदन – भाई लोग हमसे तs बहुत बड़ गलती हो गईल पर आपलोगन एहीसन गलती मत करेम। हम अपने माई – बहीन के चढावला में ई गलती कईनी। जवन आज हमके भुपते के पड़ता। ऊ बहीन तs अपना घरे चल गईल पर हमार जिनगी बर्बाद हो गईल। एही से रउरा लोगन से दुनु हाथ जोड़ के हमार बिनती बा कि रउरा लोगन ए दहेज के चक्कर में मत पड़ेम। काहे की दुल्हन से बढ़ के कवनो दहेज नईखे।
(यहीं पर इस छोटी सी नाट्य संस्करण कहानी का समाप्ति हो जाती है)
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳