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2 May 2017 · 1 min read

दुर्घटना का दंश

बेबस जिंदगियों को जीवन की पुकार करते नहीं देखा आज से पहले ,
पल भर में जिंदगी को इस तरह मुहँ मोड़ते नहीं देखा आज से पहले I

“प्रेम की नगरी” में प्रेम के दो फूल जग को अर्पित करते चले,
इंसानियत की कश्ती से इस जग का सागर पार करते चले,
कब टूट जाये जिंदगी की कड़ी, इन्सान-2 से प्यार करते चले,
किस इन्सान में बसे हो भगवान,प्यार का दीपक जलाते चले,

बेबस जिंदगियों को जीवन की पुकार करते नहीं देखा आज से पहले ,
बेबस इंसान को जिंदगी की भीख माँगते नहीं देखा आज से पहले I

“ राज ” अगर पहले यह खौपनाक नज़ारा इस जग में देख पाता ,
अपने आगे – पीछे नफ़रत का कारोबार कभी आगे नहीं बढाता ,
“प्यार का दीपक” माँ भारती के हर घर-आँगन में जरूर जलाता ,
आया कहाँ से,जाना कहां है तुझे?यह पैगाम हर दिल को पहुँचाता I

बेबस जिंदगियों को इस तरह जीवन की पुकार करते नहीं देखा आज से पहले ,
आंसुओं के सैलाब में भविष्य के सपनों को चूर-2 होते नहीं देखा आज से पहले I

देशराज “राज”

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